गुरुवार, 28 मई 2009

फुचिया

आज 'कचरे' से पालीथीन बीनते -बीनते
वो आगे निकल गई
कुछ गालियाँ बुदबुदाते हुए ,
अपने आप को
या किसको मालूम नही ?

जाने क्या हो गया है लोगों को
आजकल पालीथीन भी कम मिलते हैं
इस ढेर में |
कुछ दिनों पहले सुना था
टीवी में कुछ आ रहा था
पालीथीन का उपयोग कम करने को
इससे जमीन ख़राब होती है
और शायद इसीलिए लोगों ने ...
लेकिन इससे उस क्या
उसके पेट पर तो लात पड़ रही है ना |

वो रुक गई है उसी जालने के पास आकर
जिसके छड़ से टीवी देखती है |
अहा ! आज अच्छी-अच्छी तसवीरें आ रही हैं
शायद इसे ही लोग कुछ लोग अमेरिका कहते है
साफ़-सुथरे लोग
सड़क- गलियां, नदी -नालियाँ
बस-ट्रेन, घर - खिड़कियाँ
सभी कितने साफ़-साफ़ |
फ़िर अचानक ही बिदक जाती है -
अच्छा हुआ मैं वहां पैदा नही हुई |
कहीं कचरे का नामोनिशान ही नहीं
कैसे जी पाती फुचिया वहां ?