शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

गुजारिश

ज़िन्दगी यूँ दौडी कि कौन, कब, कहाँ याद रहे,
न तो जमीं याद रही ना आसमा याद रहे |
इक तकल्लुफ देना ज़िन्दगी मेरी साँसों को,
वो जब भी उठे, मेरे दोनों जहाँ याद रहे |

जो भटक जाऊँ कभी अपने पथ से,
मुझे उनके पैरों के निशाँ याद रहे |
भूल जाऊँ चाहे अपनी मंजिल कहीं,
पर संग मेरे चला कुछ देर, वो कारवां याद रहे |

चाहे सुबह हो जाए, मेरे पहुँचने से पहले
पर रात भर को पिघली, जीवन में वो शमां याद रहे |
खुदा माफ़ करे जो भूल जाऊँ मैं दोस्तों को,
पर हर राह पर मिले वो मेहरबां याद रहे |

मैं चाहे खो जाऊँ उसकी चकाचौंध में,
पर अपने सिद्धांतों कि वो दरम्यान याद रहे |
जो छाने लगे कभी, मुझ पर ग़म का अँधेरा
हर आंसू के पहले, मुझे मेरी खुशियाँ याद रहे |

मैं मालिक बन जाऊँ भले कई महलों का,
पर सर छुपाने को थी जो, वो तीन कोठरियां याद रहे |
हो जाऊँ आदी अगर मैं, कभी मीठे पानी का
बचपन से प्यास बुझाती, वो गाँव का कुआँ याद रहे |

लाख दूर चला जाऊँ चाहे मैं उसकी नजर से,
पर आँगन में बाट जोहती वो बूढी माँ याद रहे |
या खुदा, भेज दे मुझे तू जहाँ चाहे, तेरी मर्जी
पर कर इतना करम कि मुझे मेरा हिन्दुस्तां याद रहे |

1 टिप्पणी: